Tuesday 2 June 2015

राज्य के 8 जिले शुष्कता की ओर बढ़ रहे



0  किसानों को करना पड़ेगा मजबूरन फसल चक्र परिवर्तनरायपुर(जसेरि)। छत्तीसगढ़ में ग्लोबल वार्मिंग का असर दिखने लगा है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण राज्य में औसत वर्षा लगातार कम हो रही है पहले जहां राज्य में औसतन 1380 मिलीमीटर वर्षा होती थी अब मात्र 1160 मिली मीटर वर्षा हो रही है। मानसून के इस बदलाव के चलते राज्य के 8 जिले अध्र्द शुष्क हो गए हैं तथा तेजी से शुष्कता की ओर बढ़ रहे हैं। अगर ये जिले पूरी तरह शुष्क हो गए तो वहां धान की फसल लेना मुश्किल हो जाएगा। किसानों को मजबूरन मक्का और उड़द, मूंग की फसल लेनी पड़ेगी।
इंदिरागांधी कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एएसएआएएस शास्त्री का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण पूरे विश्व में हवा की दिशा और गति बदल रही है जिसके चलते जलवायु में परिवर्तन हो रहा है। यह परिवर्तन छत्तीसगढ़ में भी देखा जा रहा हैं जहां वर्षा की मात्रा कम हुई है। पिछले 30 सालों में राज्य के 8 जिले अध्र्द शुष्क हो चुके हैं जबकि भविष्य में 4-5 और जिलों भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। वहीं पिछले 25 सालों में रायपुर जिले का तापमान दशमलव छह डिग्री बढ़ गया है। बदलते मौसम के अनुसार यदि जल्द ही वैज्ञानिक सूखा की स्थिति में पकने वाली बरानी धानों की उन्नत फसल विकसित नहीं कर पाए तो प्रदेश के इन जिलों में किसानों को मजबूरन फसल चक्र में परिवर्तन करना पड़ सकता है। उन्हें मक्का, सोयाबीन, उड़द तथा मूंग की फसल पर निर्भर रहना पड़ेगा। वैसे भी गरियाबंद तथा देवभोग में किसानों ने मक्का की खेती बढ़ाना शुरू कर दिया है।

महासमुंद जिला खतरनाक स्तर पर 
श्री शास्त्री ने बताया कि राज्य का महासमुंद जिला सर्वाधिक खतरनांक स्तर पर है जबकि अन्य जिलों में रायपुर, बालोद, दुर्ग, राजनांदगांव, कवर्धा, गरियाबंद तथा बिलासपुर हैं।

अक्टूबर में कमजोर हुई बारिश
छत्तीसगढ़ में ग्लोबल वार्मिंग के कारण अक्टूबर में बारिश कम हुई है वास्तव में अक्टूबर की बारिश बंगाल की खाड़ी में आने वाले तूफान पर निर्भर होती थी परंतु ग्लोबल वार्मिंग के कारण तूफानों की संख्या में कमी आई है इसलिए किसान अब लंबी अवधि की 145-150 दिन की फसल की जगह अब 120 दिन की धान की फसल ( महामाया,कर्मा ,मासूरी आदि) लेते हैं जो अक्टूबर तक पक जाती है।

छत्तीसगढ़ की ब्यासी पद्धति दुनिया से निराली
पुराने छत्तीसगढ़ याने बलांगीर संबलपुर, फुलझर सहित छत्तीसगढ़ के सभी 27 जिलों में ब्यासी पद्धति से धान की खेती की जाती है। ब्यासी पद्धति में ब्यासी के समय धान की बोनेी के बाद 30 दिन में 5 सेमी तक पानी होना चाहिए। यह पानी हमेशा उपलब्ध होना कठिन हो रहा है। जबकि पूरी दुनिया में सभी जगह धान रोपा पद्धति से लिया जाता है। छत्तीसगढ़ में ब्यासी पद्धति अपनाने का कारण 80 प्रतिशत असिंचित होना है।

ग्लोबल वार्मिंग का जंगलों से कोई लेनादेना नहीं
श्री शास्त्री कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग एक वैश्विक घटनाक्रम है इसका स्थानीय जंगलों की स्थिति से कोई लेना देना नहीं है। जंगल की अधिकता स्थानीय वर्षा को प्रभावित करती है उससे मानसून प्रभावित नहीं होता है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते राजस्थान, गुजरात महाराष्ट्र तथा नार्थ ईस्ट में वर्षा बढ़ रही है जबकि मध्यभारत, छत्तीसगढ़ तथा विदर्भ में वर्षा की मात्रा कम हो रही है। अब भारत के सबसे बारिश वाला स्थान चेरापूंजी के स्थान पर उसी के पास का स्थान मेश्राम ( दोनों मेघालय में ) हो गया है। 

फसल बीमा से किसानों की नाराजगी का कारण
चूंकि छत्तीसगढ़ की खेती ब्यासी पद्धति से होती है इसलिए जिसे हम सूखा कहते हैं उसे राष्ट्रीय स्तर पर सूखा नहीं माना जाता यही कारण है कि छत्तीसगढ़ का किसान फसल बीमा के मानदंड से असंतुष्ट होता है। छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय फसल बीमा को यहां की पारंपरिक खेती और मानदंडों के अनुसार लागू किए जाने की आवश्यकता कृषि मौसम वैज्ञानिक मानते  हैं।