Thursday 15 October 2015

सूखा से निपटने तालाबों के जल प्रबंधन की जरूरत


0 38 हजार तालाबों के प्रबंधन की जिम्मेदारी किसकी

 रायपुर। सूखे से निपटने के लिए राज्य में जल प्रबंधन को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। वैज्ञानिकों का मत है कि छत्तीसगढ़ का प्राचीन जल प्रबंधन श्रेष्ठ था लेकिन कालांतर में उसके रख-रखाव की ओर किसी का ध्यान नहीं रहा। वर्तमान में राज्य में 38 हजार तालाब मौजूद हैं लेकिन इसके रख रखाव को लेकर दो विभागों में आपसी विवाद है।

कृषि वैज्ञानिक डा.एएसआरएएस शास्त्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ के हर गांव में कम से कम दो तालाब हैं।  यदि इन तालाबों के माध्यम से वर्षा जल का प्रबंधन किया जाए तो राज्य में पडऩे वाले सूखे से काफी हद तक निपटा जा सकता है। पहले इन तालाबों के माध्यम से जल प्रबंधन किया जाता था लेकिन बाद में इनके रख रखाव की ओर ध्यान नहीं दिया गया । आज स्थिति यह है कि तालाब उथले हो गए है उनमें जलकुंभी है और वे गंदे हैं लोग उसमें निस्तारी तक करने से परहेज कर रहे हैं लेकिन अब इन तालाबों के वास्तव में प्रबंधन की ज्यादा जरूरत है। यदि इनमें जमी मिट्टी निकाल दी जाए और इन्हें गहरा कर दिया जाए तो वर्षा पानी का इनमें भराव किया जा सकता है-जिससे भूजल स्तर भी ठीक होगा तथा आवश्यकता पडऩे पर खेती में सिंचाई भी की जा सकती है। उन्होंने बताया कि राज्य में 38 हजार तालाबों की अभी भी उपस्थिति है लेकिन इनके प्रबंधन को लेकर कोई चिंता नहीं कर रहा है।

यह भी उल्लेखनीय है कि प्राचीन छत्तीसगढ़ में तालाबों की लंबी श्रृंखला होती थी। प्रचीन छत्तीसगढ़ के शहरों रतनपुर में 365, मल्हार में 451तथा सिरपुर में 151 तालाब की अभी भी मौजूदगी इसकी संमृद्ध जल प्रबंधन परंपरा को दर्शाती है। खुद रायपुर शहर में तालाबों को इतना पाटने के बाद भी 52 तालाब वर्तमान में बचे हुए हैं।

श्री शास्त्री कहते हैं कि छत्तीसगढ़ के तालाबों की देखरेख करने वाला कोई नहीं है तालाबों की साफ-सफाई और रख-रखाव कौन करे को लेकर उहापोह की स्थिति है। जलसंसाधन विभाग का कहना है कि तालाब उसके क्षेत्राधिकार में नहीं आते हैं जबकि पंचायत विभाग का कहना है कि उसके पास फंड की कमी है। अब जबकि प्रदेश सूखे की चपेट में आ रहा है तो सबसे जरूरी है कि इन तालाबों के रखरखाव की जिम्मेदारी सक्षम विभाग को सौंपी जाए तथा प्राचीन जल प्रबंधन को अपनाया जाए, क्योंकि राज्य तेजी से क्लाइमेट चेंज के कारण सूखे की गिरफ्त में आ रहा है।

सूखे से निपटने के लिए किए जा रहे कृषि विभाग के प्रयासों पर संचालक प्रताप कृदत्त कहते हैं कि राज्य के 70 प्रतिशत क्षेत्रों में वर्षा पर आधारित खेती होती है इसलिए विभाग कम समय में पकने वाली फसल जैसे इंदिरा बरोनी, आईआर 64 तथा स्वर्णा सब वन जैसी धान की फसलों को किसानों को लगाने की समझाइश दे रहे हैं। यही कारण है कि राज्य में धान का उत्पादन बढ़ा है। उन्होंने भी वर्षा के जल प्रबंधन पर अपनी सहमति जताई है।

कामयाब नहीं श्री पद्धति
राज्य में कुल 27 प्रतिशत खेती सिंचित है जिसमें 18 प्रतिशत नहर सिंचाई क्षेत्र है जबकि 9 प्रतिशत ट्यूबवेल सिंचित क्षेत्र है। धान की श्री पद्धति जिसमें कम पानी में धान का उत्पादन संभव है सिर्फ ट्य़ूबवेल सिंचित क्षेत्र में ही लिया जा सकता है। राज्य की भौगोलिक स्थिति पारंपरिक खेती के लिए ही अनुकूल है इसलिए भी जल प्रबंधन की जरूरत बताई जा रही है।

520 स्टाप डेम और एनीकट
जल संरक्षण के कार्य के तहत विभाग में कार्य किए जाते हैं । वर्तमान में विभाग में 520 स्टाप डेम और एनीकट हैं जिनमें पंप के द्वारा सिंचाई की जाती है। वैसे इनमें निस्तार के लिए पानी उपलब्ध होता है। तालाबों का काम मनरेगा के तहत पंचायत विभाग करता है।
एच.आर.कुटारे
प्रमुख अभियंता, जलसंसाधन

बड़े तालाबों के लिए प्रस्ताव बुलाए गए
राज्य के बड़े सिंचाई लायक तालाबों को विभाग के अंतर्गत लेने के लिए प्रस्ताव बुलाए गए हैं। बाकी छोटे तालाबों की जिम्मेदारी जिला पंचायतों की है।
बृजमोहन अग्रवाल
कृषि एवं जलसंसाधन मंत्री

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