Monday 19 October 2015

चावल जीराफूल की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में दस्तक


0 दुबई के ट्रेडर ने एमओयू करने किया संपर्क

रायपुर। छत्तीसगढ़ का सुगंधित चावल जीराफूल को स्थानीय बाजार में जहां अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है, वहीं उसकी विदेश में भी मांग की संभावना तलाशी जा रही है। राज्य ने अपने सहकारी उत्पाद को विदेशों में पापुलर करने के लिए नई दिल्ली में शुक्रवार से आयोजित राइस इंटरनेशनल कांफ्रेंस में प्रस्तुत किया है।
जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ की टोपोग्राफी (भौगोलिक संरचना) में बस्तर और सरगुजा की निचली जमीन सुगंधित चावल उत्पादन के लिए उपयुक्त है इसलिए सरगुजा में पारंपरिक जीराफूल की खेती को पिछले साल से व्यापारिक रूप दिया गया है। जिला बलरामपुर कृषि विज्ञान केन्द्र के डा.अरुण त्रिपाठी ने बताया कि सरकारी प्रयासों से वर्तमान में जिले के धान उत्पादित 90 हजार हेक्टेयर रकबे में से मात्र 7 हजार हेक्टेयर में 40-45 किसानों द्वारा जीरा फूल सुगंधित चावल का उत्पादन शुरु कराया गया है। इस जीराफूल सुगंधित धान उत्पादन में 9 स्वसहायता समूह कार्यरत हैं जिसमें से 3 स्वसहायता समूह सीधे विज्ञान केन्द्र से जुड़े हैं। इन समूहों द्वारा उत्पादित जीराफूल को विभिन्न एजेंसियों एवं संस्थानों के माध्यम से विक्रय किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस नई पहल से स्वसहायता समूह से जुड़े सभी किसान व्यापारी में तब्दील हो चुके हैं वे अपने उत्पादन का स्वयं मूल्य निर्धारण करते हैं और अपने उत्पाद जीराफूल को सीधे उपभोक्ताओं को बेच देते हैं। किसानों को जीराफूल उत्पादन में 30 रुपए प्रतिकिलो की लागत पड़ती है जिसे किसान 60 रुपए प्रतिकिलो बेच रहे हैं गुणवत्ता के कारण उसका चावल हाथों हाथ बिक रहा है जिसका सीधा लाभ किसानों को मिल रहा है।
श्री त्रिपाठी कहते हैं कि जीराफूल सरगुजा का पारंपरिक चावल था लेकिन दो दशक में इसकी खेती में तेजी से गिरावट आई थी, किसान हाईब्रीड धान के उत्पादन के लिए प्रेरित हुए थे लेकिन धान लगाने का ज्यादा खर्च और हर साल नए बीज खरीदने के खर्चीले सौदे के कारण पिछले दो साल से किसान जीराफूल उत्पादन की ओर मुड़े हैं। इन किसानों ने कृषि विज्ञान केन्द्र के माध्यम से पारंपरिक चावल उत्पादन परियोजना से जुड़ कर जीराफूल का उत्पादन शुरु किया है। पिछले दो सालों में बलरामपुर जिले के किसानों का जीराफूल उत्पादन पहले की तुलना में दो गुना रकबा हो गया है।
श्री त्रिपाठी का कहना है कि स्वसहायता समूह को राज्य सरकार का भरपूर सहयोग मिल रहा है। इसके चलते ही किसानों का उत्पाद राजधानी के माल से लेकर अन्य एजेंसियों में बिक रहा है। चावल की गुणवत्ता को देखते हुए दुबई का अंतर्राष्ट्रीय ट्रेडर ओजोन कन्सल्टेंट राज्य से 100 टन चावल प्रतिवर्ष का एग्रीमेंट करने को तैयार है वो हमारे उत्पादन की सीमां 100 टन छूने का इंतजार कर रहा है। जबकि राज्य शासन के सहयोग से पिछले शुक्रवार से शुरु हुए नई दिल्ली के इंटरनेशनल राइस कांफ्रेंस में स्वसहायता समूह के किसान प्रतिनिधि को भेजा गया है। इस अवसर पर विक्रय के लिए चावल के एक किलो व पांच-पांच किलो के पैकेट भी भेजे गए हैं। राज्य का सहकारी उत्पादन अब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अपनी संभावना तलाश रहा है।

राजधानी में हाथोहाथ बिकता है
राजधानी के इंदिरा गांधी कृषि प्रोद्योगिकी विक्रय केन्द्र में सरगुजा के जीराफूल की बिक्री हाथों हाथ होती है। हम पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं।
श्रीमती ज्योति भट्ट
तकनीकी सहायक

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