Wednesday 21 October 2015

धान के कटोरे में बासमती का भोग


 प्रदेश में साढ़े 36 लाख हेक्टेयर में धान का उत्पादन

रायपुर।  छत्तीसगढ़ अपने चावल की विविधता, स्वाद तथा सुगंध के लिए जाना जाता है। यहां उत्पादित होने वाला चावल बच्चों के लिए भी सुपाच्य है वहीं शुगर के मरीजों के लिए भी पथ्य है लेकिन इसके बाबजूद प्रदेश के समारोहों में बासमती का पुलाव और बिरयानी खिलाई जाती है। बासमती चावल को प्रदेश में भी स्टेटस सिंबल का दर्जा मिला हुआ है।
उल्लेखनीय है कि राज्य निर्माण के बाद प्रदेश ने व्यापारिक एवं औद्योगिक क्षेत्र में ऐसी कोई उपलब्धि हासिल नहीं जिससे उसे देश तथा विदेश में विशेष ख्याति हासिल हो सके जबकि प्रदेश में ऐसे कई क्षेत्र हैं जिस पर फोकस किया जाता तो राष्ट्रीय एवं अतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि मिल सकती थी। इन विशेष क्षेत्रों में राज्य के लोहा,हीरा तथा चावल को गिनाया जा सकता है। राज्य अभी तक अपने किसी उत्पाद की ब्रांडिंग करने में असमर्थ रहा है।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के शस्य जीव द्रव्य विभाग के प्रभारी डा.सरावगी बताते हैं कि छत्तीसगढ़ का चावल बासमती की तुलना में अधिक सुगंधित होता है।  यहां का चावल बासमती की तुलना में कम लंबा होता है लेकिन कोमल होता है इसलिए छत्तीसगढ़ के चावल को भरपेट खाया जा सकता है। वहीं बासमती को खाने के बाद थोड़ा सा स्वाद के लिए लिए जाने की परंपरा है। बासमती में कम एमाइलेज (स्टार्च) होने के कारण इसे अधिक मात्रा में नहीं खाया जा सकता है यह रूखा होता है। छत्तीसगढ़ ने पिछले दिनों देश की पहली हाई जिंक राईस वाली न्यूट्रिन रिच किस्म जारी की है। इसके अलावा लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स के कारण यहां की एक स्थानीय धान की किस्म चपटी गुरमटिया को शुगर के मरीजों के लिए उपयुक्त पाया गया है।
एग्रीकान के अध्यक्ष डा.संकेत ठाकुर कहते हैं कि सरकार ने राज्य में दाना-दाना चावल खरीदने की योजना लाई थी तो सभी किसान संकर किस्मों के धान उत्पादन को आगे आए क्योंकि संकर किस्मो की पैदावार अधिक आती है। राज्य में होने वाली सरकारी खरीद के कारण धान का उत्पादन एक संरक्षित कैश क्राप बन गया था।  इस योजना में पतले और मोटे चावल के भाव में ज्यादा अंतर नहीं होने के कारण भी किसान सुगंधित चावल की किस्मों को उगाने में हतोत्साहित हुए आज सिर्फ सुगंधित चावल सरगुजा तथा जशपुर क्षेत्र में बोया जाता है। राज्य में सुगंधित धान लगाने का रकबा अब मात्र एक लाख हेक्टेयर रह गया है। वर्तमान में जबकि राज्य की नीति बदल गई है सरकार किसानों से उसकी उपज का 15 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से धान खरीद रही है तो ऐसे में फिर से किसान अगर अच्छी कीमत मिले तो सुगंधित धान पैदावार की ओर लौट सकता है। 
छत्तीसगढ़ राइस मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष योगेश अग्रवाल ने कहते हैं कि छत्तीसगढ़ पहले की तरह धान का कटोरा  नहीं रहा यहां के पतले चावल की आपूर्ति अब महाराष्ट्र से आने वाले पतले चावल से हो रही है जिसकी क्वालिटी कमतर होने के बावजूद राजधानी में व्यापारियों द्वारा बेचा जा रहा है। छत्तीसगढ़ का चावल पूरे देश में अपनी मिठास और सुगंध के लिए जाना जाता है। जहां तक बासमती चावल को सम्मान मिलने की बात है वह देखने में सुन्दर होता है आजकल शो का जमाना है इसलिए यहां भी पार्टियों में उसे परोसते हैं।
कृषि विभाग के संचालक प्रताप कृदत्त कहते हैं कि छत्तीसगढ़ का उत्पादित सुगंधित चावल मेट्र के मांग की ही पूरा नहीं कर पाता तो उसकी विदेश के लिए ब्रांडिंग कैसे की जाए। प्रदेश में साढ़े 36 लाख हेक्टेयर में धान का उत्पादन लिया जाता है जिसमें सुगंधित धान का हिस्सा बहुत कम है। सुगंधित चावल की ब्रांडिंग के लिए छत्तीसगढ़ शासन कोई योजना नहीं ला रहा है।
इस मुद्दे पर बलरामपुर कृषि विज्ञान केन्द्र के जीराफूल उत्पादन परियोजना के प्रभारी डा.अजय त्रिपाठी कहते हैं कि बासमती को सम्मान सिर्फ इसलिए मिला रहा है क्योंकि यह सबसे पहले अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गया जिसके कारण टीवी तथा अन्य प्रचार माध्यमों में विज्ञापनों के माध्यम से इसे स्टेटस सिंबल बनने का मौका मिला, हमारा चावल अभी बाजार में गया ही नहीं है अन्यथा अभी भी वह अतर्राष्ट्रीय बाजार में छाने का माद्दा रखता है। जरूरत है तो सिर्फ सुगंधित चावल उत्पादक संघों का फेडरेशन बनाकर आक्रामक मार्केटिंग की, रही बात सुगंधित किस्म के धान के कम उत्पादन की तो यह उसकी अच्छी कीमत से फायदे में तब्दील की जा सकती है। उन्होंने कहा कि सुगंधित धान की खेती के कैश क्राप में तब्दील करने के लिए सुगंधित धान उत्पादन ही नहीं बल्कि किसानों के द्वारा उसका चावल बना कर खुद मार्केटिंग करने की जरूरत है। जिसका सफल प्रयोग हम बलरामपुर के जीराफूल उत्पादन परियोजना में कर रहे हैं।

No comments:

Post a Comment