0 मंत्रालय में हो चुकी है बैठक
0 जीपीएस फोटो सिस्टम से होगा राज्य के खेतों की मिट्टी का सर्वे
रायपुर। लगातार रासायनिक खेती से घट रहे खाद्यान्न उत्पादन को ठीक करने से लिए राष्ट्रीय स्तर पर नेशनल मिशन फार सस्टेनेबल एग्रीकल्चर (एनएमएसए) योजना लाई गई है। इस योजना के तहत छत्तीसगढ़ में भी सायल हेल्थ मैनेजमेंट के अंतर्गत सायल हेल्थ कार्ड बनाए जाएंगें । इस संबंध में पिछले दिनों मंत्रालय में बैठक हुई जिसमें सायल हेल्थ बनाने के लिए वृहद कार्य-योजना बनाने का निर्णय लिया गया है। केन्द्र सरकार से मिले निर्देशों के अनुसार वर्तमान वर्ष में इस योजना में साढे 9 लाख सायल हेल्थ कार्ड बनाने का लक्ष्य दिया गया है।
उपरोक्त जानकारी कृषि विभागीय सूत्रों ने दी है। आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि राज्य में कृषि भूमि के समूहों (क्लस्टर) के आधार पर पूरे राज्य की जमीनों का सायल कार्ड बनाया जाएगा। योजना में जीपीएस (ग्लोबल पोजनिंग सिस्टम ) की फोटो सेंसिंग को भी शामिल किया जा रहा है । उपग्रहों से प्राप्त चित्र के आधार पर इस योजना की मैपिंग की जाएगी। योजना का वृहद प्रचार प्रसार आगामी लोक सुराज कार्यक्रम में विभाग द्वारा किए जाने की योजना है।
8 स्थाई व 4 चलित मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला
सूत्रों ने बताया कि विभाग के पास वर्तमान में 8 स्थाई मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला हैं जबकि 4 चलित मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला है जिनमें से वर्ष 15-16 में स्थाई मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला के उन्नयन का प्रस्ताव है। इसके अलावा इस योजना में विश्वविद्यालय की मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाओं को भी शामिल करने की योजना है। राज्य में 36 लाख 46 हजार किसानों के हिसाब से करोड़ों हेल्थ कार्ड बनाए जाने हैं।
क्या होगा हेल्थ कार्ड में
सायल हेल्थ कार्ड में किसान के खेत की मिट्टी में वर्तमान पोषक तत्वों की जानकारी होगी तथा उस मिट्टी में समय-समय पर डाले जाने वाली रसायन और कार्बनिक खादों की मात्रा का विवरण दर्शाया जाएगा। उसके अनुसार मिट्टी में होने वाले परिवर्तन तथा उसके अनुसार आगामी उगाई जाने वाली फसल के संबंध में रासायनिक खाद संबंधी परामर्श दिया जाएगा।
धमतरी-जांजगीर जिले का फर्टीलिटी मैप तैयार
इंदिरा कृषि विश्वविद्यालय से मिली जानकारी के अनुसार विश्वविद्यालय ने उसके कोटे का धमतरी और जांजगीर में प्रति 10 हैक्टेयर से मिट्टी का परीक्षण कर सायल हल्थ का फर्टीलिटी मैप बनाने का काम किया है। किसानों का सायल हेल्थ कार्ड विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला में बनाने की सुविधा है। यहां जागरूक किसानों का सायल हेल्थ कार्ड बनाया जा रहा है।
कम उत्पादन से कई राज्य प्रभावित
रासायनिक खेती कर अधाधुंध उत्पादन लेने के कारण हरियाणा,पंजाब में खेती के उत्पादन में कमी आई है। इसी तरह विश्व स्तर पर रूस इस बीमारी से पीडि़त है जहां की खेती बंजर होने के कगार पर है। यही कारण है कि हरियाणा और पंजाब के किसान छत्तीसगढ़ की जमीन खरीद कर खेती करने की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
पोषक तत्व की कमी से नहीं होगा पौधा का जीवन चक्र पूरा
किसी भी पौधे के जीवन चक्र के पूर्ण होने में 19 पोषक तत्व जिम्मेदार होते हैं। पौधों का 95-96 प्रतिशत भाग कार्बन, हाइड्रोजन और आक्सीजन से बना होता है जो वायुमंडल में प्राकृतिक रूप से प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है शेष 4 प्रतिशत जमीन से पौधा लेता है जिसे संतुलित रखने की जिम्मेदारी किसान की होती है। इन 19 पोषक तत्व में किसी भी एक की कमी होने पर उसकी जगह कोई दूसरा तत्व स्थानापन्न नहीं हो सकता है । इन पोषक तत्वों की कमी से बीज से पौधा फिर फल से बीज का जीवन चक्र पूरा नहीं कर सकेगा।
डा.रमाकांत बाजपेयी
विभागाध्यक्ष, मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग
इंदरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर
पौधे को जीवन चक्र के लिए इन पोषक तत्वों की जरूरत है
प्राथमिक पोषक तत्व कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन (वायुमंडल से) नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, (प्राथमिक तत्व) कैल्शियम, मैग्नेशियम तथा सल्फर (द्वितीयक तत्व) तथा सूक्ष्म पोषक तत्व में आयरन, मैग्नीज, जिंक,कापर, बोरान, मैग्नीशियम, क्लोरीन, निकिल, कोबाल्ट तथा सिलिकान।
रासायनिक खेती की जगह पारंपरिक अच्छी
अंधों की तरह रासायनिक खेती करने की जगह पारंपरिक कार्बनिक खेती करना(गोबर खाद, कम्पोस्ड खाद का उपयोग) ज्यादा अच्छा है जिससे खेती में पोषक तत्वों का संतुलन कायम रहता है इस पद्धति में मिट्टी से जितना किसान लेता है उसे उतना ही वापस देता भी है जबकि रासायनिक खेती में हम उसके संतुलन को बिगाड़ते हैं। धरती में जो भी पदार्थ डाला जाता है सभी की रासायनकि क्रिया प्रतिक्रिया होती है और वह धरती में संरक्षित रहती है जिसका प्रभाव उसमें उगने वाली वनस्पति पर पड़ता है।
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