Tuesday, 7 April 2015

छत्तीसगढ़ से मजदूरों का पलायान जोरों पर



0 अधिक रोजी के  लालच हो रहा पलायन, मनरेगा के लडख़ड़ाने से पलायन हुआ तेज
रायुपर। छत्तीसगढ़ से मजदूरों के पलायन का सिलसिला शुरू हो चुका है। रोजो रोटी की तलाश में प्रदेश के मजदूर उत्तर प्रदेश, नई दिल्ली,पंजाब,हरियाणा और काश्मीर की ओर पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं। उनके इस पलायन को  राज्य में लडखड़़ाए मनरेगा के काम ने पलायन को और बढ़ा दिया है।
मिली जानकारी के अनुसार लवन क्षेत्र के 60 गांवों से हर साल लगभग 35 हजार किसान-मजदूर दूसरे राज्य चले जाते हैं। ये लोग उत्तर प्रदेश, बिहार, जम्मू एवं कश्मीर, दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश सहित देश के अन्य हिस्सों में जाकर भवन निर्माण, सड़क व नाली निर्माण जैसे काम में लग जाते हैं या ईंट-भट्टों पर काम करते हैं। राज्य के बेमेतरा, बालोद, कवर्धा, गरियाबंद, दुर्ग, धमतरी सहित कई और जिलों से भी किसान-मजदूरों के पलायन की खबरें लगातार आ रही हैं। इन मजदूरों के पलायन में आदिवासी बहुल क्षेत्रों के मजदूरों का प्रतिशत नहीं के बराबर है।
रायपुर रेलवे स्टेशन  पर  पलायन  कर रहे शंभू बघेल ने बताया कि राज्य के बाहर हम छत्तीसगढिय़ा मजदूरों  की अच्छी पूछ परख है। लोग हमें बिलसपुरिहा मजदूर पुकारते हैं और दूसरे मजदूरों के मुकाबले हमारी मेहनत देखकर ज्यादा पैसा देते हैं। यहां के मुकाबले अन्य प्रदेशों में अच्छी मजदूरी मिलती है। वो नई दिल्ली में रेलवे निर्माण में लगे निजी ठेकदार के यहां काम करता है इस काम में उसकी पत्नी भी साथ रहती है। उसने बताया कि चूंकि काम सरकारी हिसाब का है इससे हम लोग थोड़ा दम भी मार लेते हैं फिर भी पूरी मजदूरी मिलती है।
वहीं दूसरी तरफ बलौदाबाजार के कंस निषाद ने बताया कि 'Óहम 55 मजदूर एक साथ गांव छोड़कर जा रहे हैं। साथ में 15 बच्चों भी हैं। हम लोग फैजाबाद में ईंट बनाने का काम करेंगे। एक हजार ईंट बनाने पर 400 रुपये मिलते हैं। दो मजदूर मिलकर एक दिन में दो हजार से ज्यादा ईंट बना लेते हैं। हम लोग छह महीने वहां काम कर लौट आएंगे।ÓÓ
इसके अलावा एक अन्य मजदूर दल के जगदीश कुर्रे का कहना था कि वो लोग काश्मीर में बर्षों से काम करने जाते हैं वहां उनका झाला है तथा वहां के सारे व्यापारी उन्हें पहचानते हैं उसके पास वहां पहुंचने तक का पैसा है। उसके बाद वे झाला में रहेंगे तथा बिना किसी सहारे के दैनिक मजदूरी करेंगे। उसने बताया कि वो किसी का पैसा लेकर नहीं आते हैं इसलिए सभी दुकानदारों के बीच छत्तीसगढ़ के मजदूरों की अच्छी साख है। उल्लेखनीय है कि पिछले कई वर्षों में ये मजदूर काश्मीर की आतंकी गतिविधयों के भी शिकार हो चुके हैं लेकिन फिर भी काश्मीर जाना नहीं चूकते हैं।
राज्य में मनरेगा के लडख़ड़ाने से प्रदेश में मजदूरों का पलायन में तेजी आई है। वैसे छत्तीसगढ़ के ये मजदूर अब रोजीरोटी कमाने दूसरे प्रांतों में जाने के आदि हो चुके हैं। ये मजदूर कृषि कार्य के समय अपने गांवों में आ जाते हैं।

सदन में उठ चुका है मामला
छत्तीसगढ़ विधान सभा में भी मजदूरों के पलायन का मामला उठ चुका है। छत्तीसगढ़ विधानसभा में राजस्व मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय ने नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव के एक सवाल के लिखित जवाब में प्रदेश से मजदूरों के पलायन की बात स्वीकारी है। उन्होंने बताया है कि सूबे में बीते तीन वर्षो में 95 हजार 324 लोगों ने अधिक मजदूरी के लालच में या परंपरागत ढंग से पलायन किया है। राजस्व मंत्री के जवाब में सर्वाधिक 29 हजार 190 पलायन जांजगीर चाम्पा जिले से होना बताया गया है।

बंधक तक बनना आम बात
रोजी रोटी की तलाश में भटकते इन मजदूरों पर दैहिक और आर्थिक शोषण की बात आम है कभी-कभी तो इनके बंधक बनाने की जानकारी मिलती है। छत्तीसगढ़ के 725 बंधक मजदूरों को पिछले 27 माह में दीगर राज्यों से मुक्त कराया गया है। इस दौरान मजदूरों को बंधक बनाए जाने के 243 मामले सामने आए थे। हर महीने छत्तीसगढ़ के मजदूरों को बंधक बनाए जाने के औसतन 9 मामले हैं। इससे यह भी निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि हर माह छत्तीसगढ़ के करीब 27 मजदूरों को दीगर प्रांतों के ठेकेदार बंदी बना लेते हैं।

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